Sukhee Movie Review: तू सुबह से लेकर रात तक करती क्या है?’ फिल्म में हाउसवाइफ बनी सुखी (शिल्पा शेट्टी) से उसका पति गुरु (चैतन्य चौधरी) पूछता है। परिवार की धुरी कहलाने वाली गृहणियों से यह सवाल सालों से पूछा जा रहा है। आम धारणा यही है कि घर में रहने वाली महिलाएं कुछ नहीं करतीं। बीते सालों में इतना बदलाव जरूर हुआ है कि वे ‘हाउसवाइफ’ से ‘होममेकर’ कहलाने लगी हैं, मगर जितना कुछ वे अपने घर-परिवार के लिए करती हैं, उसका सिला और सम्मान उन्हें मिल नहीं पाता। और जब कभी वे अपनी ख्वाहिश की बात करती हैं, तो सेल्फिश करार दे दी जाती हैं। निर्देशक सोनल जोशी की फिल्म सुखी इसी लीक पर आगे बढ़ती है।
Sukhee Movie Review
कहानी है 38 साल की सुखी (शिल्पा शेट्टी) घर-परिवार को समर्पित एक खुशनुमा गृहणी है। जो टेंथ में पढ़ने वाली अपनी किशोर बेटी, कंबल का बिजनेस करने वाले पति और बूढ़े-बीमार ससुर की जिम्मदारियों के बीच खुद को भूल चुकी है। ये वही सुखी है, जो एक समय में अपने स्कूल-कॉलेज की सबसे बेबाक और बिंदास लड़की हुआ करती थी। बाइक और हॉर्स राइडिंग में माहिर, फैशन और स्टाइल में आगे रहने वाली सुखी ने अपने माता-पिता को बताए बगैर शादी कर ली थी और खामियाजा ये भुगतना पड़ा कि उन्होंने सुखी से नाता तोड़ लिया था। मगर एकरसता भरी सुखी की जिंदगी में टर्निंग पॉइंट तब आता है, जब उसे अपने स्कूल में होने वाले रीयूनियन की खबर मिलती है। सुखी इस रीयूनियन में जाना चाहती है, मगर गुरु को लगता है कि यह उसका स्वार्थी कदम है और सुखी जब अपने पति और बेटी की मर्जी के खिलाफ उस रीयूनियन में भाग लेने जाती है, तो घर में तो उथल-पुथल मचती ही है, सुखी की जिंदगी में भी बहुत कुछ बदलता है। अपने स्कूल के दोस्तों से मिलकर वह भी खुद को खोजने की स्थिति में आ जाती है। क्या वह खुद को खोज पाती है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी
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महिलाओं के मसलों को लेकर एक अरसे से फिल्में बनाई जा रही हैं और कई संगीन मुद्दों को फिल्मों में रेखांकित किया जाता रहा है। इस बार निर्देशक सोनल जोशी ने हाउसवाइफ की चुनौतियों और व्यथा को कहानी का आधार बनाया है, जो काफी प्रासंगिक है। काफी हद तक हाउस वाइफ्स इससे रिलेट भी करेंगी। सोनल कहानी को बहुत ही रियलिस्टिक अंदाज में शुरू करती हैं। महिला मुद्दों की बात हलके-फुलके ढंग से करती हैं। मध्यांतर तक कहानी सुगमता से आगे बढ़ती है, मगर फिर इंटरवल के बाद लड़खड़ा जाती है। लेखक राधिका आनंद, पॉलोमी दत्ता और रुपिंदर इंद्रजीत द्वारा लिखी कहानी का स्क्रीनप्ले कमजोर है।
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हालांकि कुछ दृश्य और संवाद अच्छे बन पड़े हैं, मगर सुखी के दोस्तों का ट्रैक अधपका लगता है। उनके जीवन की जद्दो-जेहद को स्थापित नहीं किया गया है। अमित साद के साथ शिल्पा शेट्टी के लव ट्रैक में भी डेप्थ की कमी नजर आती है। हालांकि, शिल्पा शेट्टी के पारिवारिक दृश्य यादगार बन पड़े हैं। जैसे सुखी का अपने ससुर के साथ रिलेशनशिप, पिता-पुत्री के सीन, खास तौर पर बेटी के साथ मेडिकल जाकर पैड खरीदने वाला दृश्य। तकनीकी पक्ष की बात की जाए, तो फिल्म थोड़ी कतरी जा सकती थी। सिनेमैटोग्राफर आर डी ने दिल्ली को खूबसूरती से कैप्चर किया है। क्लाइमेक्स सुखद है। फिल्म का संगीत पक्ष उतना मजबूत नहीं है।